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भगवत रावत

जन्म : 13 सितम्बर, 1939, ग्राम टेहेरका, जिला टीकमगढ़ (म.प्र.)।

शिक्षा : बी.ए. (बुन्देलखंड कॉलेज), झाँसी (उ.प्र.)। एम.ए.बी.एड. प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए भोपाल (म.प्र.) से। 1967 से 1982 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, मैसूर (कर्नाटक) तथा भोपाल में हिन्दी के व्याख्याता। 1983 से 1994 तक हिन्दी के रीडर पद पर कार्य करने के बाद दो वर्ष तक मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के संचालक। 1998 से 2001 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान में हिन्दी के प्रोफेसर तथा समाज विज्ञान और मानविकी शिक्षा विभाग के अध्यक्ष। इसके बाद 2001 से 2003 तक साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश के निदेशक तथा मासिक पत्रिका ‘साक्षात्कारका सम्पादन। 1989 से 1995 तक म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा ‘वसुधा’ (त्रौमासिक) पत्रिका का सम्पादन। मध्य प्रदेश की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के विकास एवं संचालन में सक्रिय योगदान।

सृजन (कविता संग्रह) : 1. समुद्र के बारे में (1977), 2. दी हुई दुनिया (1981), 3. हुआ कुछ इस तरह (1988), 4. सुनो हिरामन (1992), 5. अथ रूपकुमार कथा (1993), 6. सच पूछो तो (1996), 7. बिथा-कथा (1997), 8. हमने उनके घर देखे (2001), 9. ऐसी कैसी नींद (2004), 10. निर्वाचित कविताएँ (2004), कहते हैं कि दिल्ली की है कुछ आबोहवा और (2007), अम्मा से बातें और अन्य कविताएँ (2008), देश एक राग है (2009)

आलोचना : 1. कविता का दूसरा पाठ (1993), 2. कविता का दूसरा पाठ और प्रसंग (2006)

सम्मान : 1. दुष्यन्त कुमार पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् (1979), 2. वागीश्वरी सम्मान, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1989), 3. शिखर सम्मान, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग (1997-98), 4. भवभूति अलंकर, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (2004)

उर्दू, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, उड़िया, कन्नड़, मलयालम, अंग्रेजी तथा जर्मन भाषाओं में कविताएँ अनूदित।

सम्पर्क : 129, आराधना नगर, कोटरा, भोपाल 462003 (म.प्र.)

निधन : किडनी की गम्भीर बीमारी से जूझते हुए 25 मई, 2012 को भोपाल (म.प्र.) में अवसान।

अम्मा से बातें और कुछ लंबी कविताएं

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प्रतिनिधि कविताएं : भगवत रावत

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भगवत रावत की काव्य-चिंता के मूल में बदलाव के लिए बेचैनी और अकुलाहट है। इसीलिए उनकी कविता में संवादधर्मिता की मुद्राएँ सर्वत्र व्याप्त हैं, जो उनके उत्तरवर्ती लेखन में क्रमश: संबोधन शैली में बदल गई हैं।

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सच पूछो तो

भगवत रावत

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पारिवारिक और सामाजिक जीवन से कई किस्म की मुठभेड़ें हैं, आत्‍म-स्वीकृतियाँ हैं, यथार्थ से निर्मम मुकाबले हैं लेकिन निराशा या पस्ती कहीं नहीं है

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